हे चित्रगुप्त महाराज!

आस्था डेस्क : हमारे पुराणकारों ने असंख्य देवी-देवताओं की सृष्टि की — किसी के हाथ में त्रिशूल, किसी के पास सुदर्शन चक्र, कोई धनुषधारी, तो कोई गदा के स्वामी। पर उनमें एक ऐसे देवता भी हैं, जिनके हाथ में न अस्त्र है न शस्त्र — केवल कलम। शांत, गंभीर, और अपने लेखे-जोखे में तल्लीन — वही हैं चित्रगुप्त, धर्मराज के सचिव, पाप-पुण्य के अदृश्य लेखाधिकारी। कहा जाता है, वे हर जीव के कर्मों का हिसाब अपनी दिव्य बही में दर्ज करते हैं। उनके आंकड़ों के आधार पर ही धर्मराज तय करते हैं कि कौन स्वर्ग जाएगा, और किसे नर्क का टिकट मिलेगा।देश के कलमजीवी कायस्थ समुदाय के लोग चित्रगुप्त को अपना आदिपुरुष मानते हैं — और आज के दिन कलम-दवात की पूजा कर उनकी आराधना करते हैं। पर लगता है अब वह पुराना युग बीत चुका है। धरती पर बढ़ते पापों और इंसानों के जटिल होते स्वभाव को देखकर यमलोक भी शायद डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका होगा। अब चित्रगुप्त महाराज के हाथों में कलम नहीं, बल्कि लैपटॉप या टैबलेट होगा — और उनके सामने धर्मराज की ई-कोर्ट में पाप-पुण्य के सारे डाटा क्लाउड में सुरक्षित होंगे। आज इसी दिव्य लेखाकार की पूजा के दिन,मैं भी अपनी मोबाइल स्क्रीन पर उनकी छवि लगाकर हाथ जोड़कर खड़ा हूं।हे प्रभु! मैं चित्रांश तो नहीं,पर आपकी तरह थोड़ा-बहुत कलमजीवी अवश्य हूं। धन, वैभव या पद नहीं मांगूंगा —वह लक्ष्मीजी और सरस्वती माता के विभाग हैं।न स्वर्ग की चाह, न नरक का डर —वह निर्णय धर्मराज पर छोड़ता हूं। आपसे बस एक छोटी-सी विनती है,अपने आकाशीय अकाउंट का पासवर्ड मुझे दे दीजिए।आपके दरबार में हाजिर होने से पहलेमैं अपने पाप और पुण्य — दोनों डिलीट कर दूं। ताकि न स्वर्ग में जगह बने, न नरक में ठिकाना।और तब धर्मराज अपने यमदूतों से कहें —”अरे, इसे फिर से धरती पर भेज दो,यह आदमी अभी अधूरा है,अब भी कुछ लिखना बाकी है!”हे चित्रगुप्त महाराज!हमारे पुराणकारों ने असंख्य देवी-देवताओं की सृष्टि की — किसी के हाथ में त्रिशूल, किसी के पास सुदर्शन चक्र, कोई धनुषधारी, तो कोई गदा के स्वामी। पर उनमें एक ऐसे देवता भी हैं, जिनके हाथ में न अस्त्र है न शस्त्र — केवल कलम। शांत, गंभीर, और अपने लेखे-जोखे में तल्लीन — वही हैं चित्रगुप्त, धर्मराज के सचिव, पाप-पुण्य के अदृश्य लेखाधिकारी। कहा जाता है, वे हर जीव के कर्मों का हिसाब अपनी दिव्य बही में दर्ज करते हैं। उनके आंकड़ों के आधार पर ही धर्मराज तय करते हैं कि कौन स्वर्ग जाएगा, और किसे नर्क का टिकट मिलेगा।देश के कलमजीवी कायस्थ समुदाय के लोग चित्रगुप्त को अपना आदिपुरुष मानते हैं — और आज के दिन कलम-दवात की पूजा कर उनकी आराधना करते हैं। पर लगता है अब वह पुराना युग बीत चुका है। धरती पर बढ़ते पापों और इंसानों के जटिल होते स्वभाव को देखकर यमलोक भी शायद डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका होगा। अब चित्रगुप्त महाराज के हाथों में कलम नहीं, बल्कि लैपटॉप या टैबलेट होगा — और उनके सामने धर्मराज की ई-कोर्ट में पाप-पुण्य के सारे डाटा क्लाउड में सुरक्षित होंगे। आज इसी दिव्य लेखाकार की पूजा के दिन,मैं भी अपनी मोबाइल स्क्रीन पर उनकी छवि लगाकर हाथ जोड़कर खड़ा हूं।हे प्रभु! मैं चित्रांश तो नहीं,पर आपकी तरह थोड़ा-बहुत कलमजीवी अवश्य हूं। धन, वैभव या पद नहीं मांगूंगा —वह लक्ष्मीजी और सरस्वती माता के विभाग हैं।न स्वर्ग की चाह, न नरक का डर —वह निर्णय धर्मराज पर छोड़ता हूं। आपसे बस एक छोटी-सी विनती है,अपने आकाशीय अकाउंट का पासवर्ड मुझे दे दीजिए।आपके दरबार में हाजिर होने से पहलेमैं अपने पाप और पुण्य — दोनों डिलीट कर दूं। ताकि न स्वर्ग में जगह बने, न नरक में ठिकाना।और तब धर्मराज अपने यमदूतों से कहें —”अरे, इसे फिर से धरती पर भेज दो,यह आदमी अभी अधूरा है,अब भी कुछ लिखना बाकी है!”

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