पेसा एक्ट लागू नहीं करने पर झारखंड हाईकोर्ट सख्त, सरकार से तीन सप्ताह में मांगी रिपोर्ट, बालू खनन पर रोक बरकरार

रांची। झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ में पेसा एक्ट लागू नहीं किए जाने के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिका पर गुरुवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार को पेसा नियमावली लागू करने में आने वाली बाधाओं को दूर करते हुए रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। अदालत ने बालू सहित लघु खनिजों के आवंटन पर रोक बरकरार रखा है। प्रार्थी आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से एक हस्तक्षेप याचिका भी दाखिल की गई है, जिसमें अधिसूचित क्षेत्र में भूमि हस्तांतरण, शराब लाइसेंस प्रदान करने और वनोपज की नीलामी पर रोक लगाने की मांग की गई है, क्योंकि पेसा अधिनियम के तहत अधिसूचित क्षेत्र में यह भी अधिकार ग्राम सभा के अधीन आते हैं। अदालत ने इस पर राज्य सरकार को विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई चार दिसंबर को होगी। सुनवाई के दौरान पंचायती राज विभाग के सचिव सशरीर उपस्थित हुए। राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि पंचायती राज विभाग ने पेसा नियमावली का प्रारूप कैबिनेट को-आर्डिनेशन कमेटी को भेजा था। लेकिन कमेटी ने उसमें कुछ त्रुटियां बताई थीं। इन त्रुटियों को दूर कर विभाग एक सप्ताह के भीतर संशोधित प्रस्ताव फिर से कमेटी को भेजेगा। उसके बाद मामले को कैबिनेट भेजा जाएगा। इससे पहले झारखंड हाई कोर्ट ने 29 जुलाई 2024 को जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को दो माह के भीतर पेसा नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया था। अदालत ने कहा था कि संविधान के 73वें संशोधन और पेसा कानून की भावना के अनुरूप नियमावली तैयार कर लागू की जाए। इसके बाद अब तक नियमावली अधिसूचित नहीं की गई है। बता दें कि पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा कानून) केंद्र सरकार ने 1996 में लागू किया गया था। इसका उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों के अधिकारों और हितों की रक्षा करना है। एकीकृत बिहार से लेकर झारखंड गठन के बाद तक राज्य सरकार ने अब तक इस कानून के तहत नियमावली नहीं बनाई है। झारखंड सरकार ने वर्ष 2019 और 2023 में पेसा नियमावली का ड्राफ्ट तैयार किया था, लेकिन उसे लागू नहीं किया गया। इसके बाद आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से जनहित याचिका दाखिल की गई थी।

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