रांची : 514 आदिवासी युवाओं को फ़र्जी नक्सली बता कर सरेंडर करने के मामले में झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. कनीय पुलिस अधिकारी द्वारा शपथ पत्र दाखिल किए जाने पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की. कोर्ट ने डीजीपी को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मौखिक में कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में उच्च पुलिस अधिकारियों द्वारा शपथ पत्र दाखिल किया जाना चाहिए था, ताकि केस की वास्तविकता जाना जा सके और इसके तह पहुंचा जा सके. लेकिन कनीय पुलिस अधिकारी द्वारा शपथ पत्र दाखिल किया गया सुनवाई के द्वारान प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार ने कोर्ट को बताया कि उच्च पुलिस अधिकारियों को बचाने के लिए डीएसपी रैंक के अधिकारी द्वारा शपथ पत्र दाखिल की गई है. पूर्व में हुई सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से पूछा था कि क्या सरेंडर कराए जाने वाले 514 युवाओं को सीआरपीएफ में नौकरी दिलाने के नाम पर पुराने जेल कम्पाउन्ड जेल रोड़ रांची में रखकर प्रशिक्षण दिलाया गया. क्या उन्हें प्रशिक्षण दिलाने की कानूनी वैधता थी. बता दें कि प्रार्थी ने याचिका में कहा था कि 514 युवाओं को सीआरपीएफ में नौकरी का लालच देकर उन्हें फर्जी नक्सली बताकर सरेंडर करने का खेल खेला गया. जांच में 514 युवकों में से केवल 10 का ही नक्सली गतिविधियों से संबंध पाया गया। बावजूद इसके, कोचिंग संस्थान दिग्दर्शन के पांच लोगों को आरोपी बताते हुए बाकी पहलुओं को दरकिनार कर जांच की फाइल बंद कर दी गई थी।पांचों आरोपी रांची, खूंटी, सिमडेगा, लोहरदगा और गुमला जिले के बताए गए। पुलिस ने सरेंडर करने वाले 128 युवकों का बयान दर्ज किया था, लेकिन इनमें से अधिकतर के पते का सत्यापन नहीं हो सका। इसके बाद उस समय के सिटी एसपी अमन कुमार के आदेश पर जांच बंद कर दी गई थी। यह पूरा मामला अब दोबारा न्यायिक जांच की मांग के कारण हाईकोर्ट में लंबित है।