स्थानीय नीति और पेसा कानून लागू न होने पर आदिवासी संघ ने उलगुलान की चेतावनी दी

रांची। राज्य स्थापना की रजत जयंती पर आदिवासी समन्वय समिति, आदिवासी जन परिषद और झारखंड उलगुलान संघ की ओर से रविवार को रांची में झारखंड के 25 वर्ष : क्या खोया, क्या पाया, विषय पर चिंतन–मंथन कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में वक्ताओं ने राज्य गठन के बाद भी आदिवासी-मूलवासी समुदायों के अधिकारों की अनदेखी पर गहरी चिंता जताई। कार्यक्रम में आदिवासी समन्वय समिति के संयोजक लक्ष्मीनारायण मुंडा ने कहा कि झारखंड में लूट-खसौट की सरकार चल रही है। राजनेता और अफसर संवैधानिक नियमों का उल्लंघन कर माफिया राज स्थापित करने में लगे हैं। उन्हाेंने ने कहा कि झारखंड ने हमने राज्य तो प्राप्त कर लिया, पर स्वराज खो दिया है। सम्मान, हक और पहचान की जगह आदिवासियाें को हाशिये पर धकेला गया। कार्यक्रम में निर्णय लिया गया कि यदि राज्य सरकार तत्काल सीएनटी–एसपीटी की रक्षा, 1932 आधारित स्थानीय नीति और पेसा का पूर्ण क्रियान्वयन नहीं करेगी, तो तीन जनवरी 2026 से उलगुलान वर्ष मनाया जाएगा। वहीं आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेमशाही मुंडा ने कहा कि अलग राज्य मिलने के बावजूद जनता को अबुआ राज नहीं मिल पाया। पेसा और जमीन कानून अब भी कागजों में सिमटा हुआ हैं। उलगुलान संघ के संयोजक अलेयस्टर बोदरा ने आरोप लगाया कि नौकरशाही संवैधानिक अधिकारों को कुचल रही है और न्यायिक आदेशों तक की अनदेखी हो रही है। वहीं कांके रोड सरना समिति के अध्यक्ष डब्लू मुंडा ने झारखंड को लूटखंड की संज्ञा देते हुए कहा कि राज्य बदहाली के कगार पर है। परिचर्चा में कई लोग मौजूद थे।

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