वक्फ कानून की हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड से तुलना नहीं कर सकते, आज फिर सुनवाई

नई दिल्लीः वक्फ कानून में संशोधनों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस पर आज भी सुनवाई होगी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता बुधवार को सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि ट्रस्ट की जमीन को सरकार सभी नागरिकों के लिए सुनिश्चित करना चाहती है। वक्फ कानून 2013 के संशोधन से पहले अधिनियम के सभी संस्करणों में कहा गया था कि केवल मुसलमान ही अपनी संपत्ति वक्फ कर सकते हैं। लेकिन 2013 के आम चुनाव से ठीक पहले एक संशोधन किया गया था, जिसके मुताबिक कोई भी अपनी संपत्ति वक्फ कर सकता है।  सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को कुछ दस्तावेज दिखाए। उन्होंने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की ओर से संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को दिए गए आश्वासन और SC में दाखिल हलफनामे का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि काउंसिल और बोर्ड का अल्पसंख्यक चरित्र कभी नहीं बदलेगा। क्योंकि, इसमें हमेशा ज्यादातर सदस्य मुस्लिम ही होंगे।   वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल  ने मंगलवार को लगभग 30 मिनट तक मुस्लिम समुदाय की आशंकाओं को उठाया था। उन्होंने कहा था कि वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के जरिए सरकार इन दोनों निकायों में गैर-मुस्लिमों को बहुमत में लाने का प्रयास कर रही है. उन्होंने सवाल किया था कि जब सरकार ने हिन्दू, सिख और ईसाई धार्मिक न्यास बोर्ड में गैर-विश्वासियों को सदस्य बनाने की कोशिश नहीं की, तो फिर मुसलमानों के वक्फ को क्यों अलग किया जा रहा है? उन्होंने इसे धर्म के आधार पर भेदभाव बताया था, जो संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत गैर-भेदभाव के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।   मेहता ने कहा कि हिन्दू धार्मिक न्यास बोर्ड के सदस्य मंदिरों में प्रवेश करते हैं और यहां तक कि अनुष्ठानों की निगरानी भी करते हैं। उन्होंने बताया कि चैरिटी कमिश्नर, जो गैर-हिन्दू भी हो सकते हैं, अर्चकों (पुजारियों) को नियुक्त कर सकते हैं और उन्हें अनुष्ठान न करने या अनैतिक गतिविधियों के लिए हटा भी सकते है। SC ने भी अर्चकों की नियुक्ति को एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि बताते हुए इसे सही ठहराया था।

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