पटना : बिहार की राजनीति में चुनावी गर्माहट चरम पर है। विधानसभा चुनाव की तारीख़ें घोषित नहीं हुई हैं, लेकिन विपक्षी दलों ने ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के जरिए राज्य में अपनी ताकत का स्पष्ट प्रदर्शन किया। यह यात्रा 17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई और 16 दिनों तक चली। 23 जिलों में लगभग 1300 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद इसे 1 सितंबर को पटना में भव्य समापन मिला। यात्रा का उद्देश्य केवल रैलियां या भीड़ जुटाना नहीं था, बल्कि मतदाता सूची में गड़बड़ियों और मताधिकार के मुद्दों पर चुनाव आयोग पर दबाव बनाना था। कांग्रेस और आरजेडी के साथ-साथ सपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी इसमें भाग लिया। पटना में अंतिम दिन आयोजित समापन समारोह में राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव की मौजूदगी ने विपक्ष की एकजुटता का संदेश दिया। अखिलेश ने मंच पर तेजस्वी यादव का खुला समर्थन किया और उन्हें महागठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश का यह कदम सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है। यह 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भी संकेत है। कांग्रेस ने अभी तक सीएम चेहरा घोषित नहीं किया है, और तेजस्वी ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बताया, लेकिन कांग्रेस ने स्पष्ट समर्थन नहीं दिया। ऐसे में अखिलेश का खुला समर्थन महागठबंधन के भीतर दबाव बनाने और शक्ति संतुलन कायम करने जैसा कदम माना जा रहा है। यात्रा के दौरान जनता का उत्साह विपक्ष को नई ताकत दे गया। पटना में ‘गांधी से अंबेडकर मार्च’ आयोजित किया गया, जिसमें हेमंत सोरेन, टीएमसी नेता और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान सहित कई विपक्षी नेता शामिल हुए। यह मार्च गांधी मैदान से अंबेडकर पार्क तक गया और यह संदेश देने के लिए था कि विपक्ष सिर्फ चुनावी गठबंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि लोकतंत्र और मतदाताओं के अधिकारों के लिए भी खड़ा है। राजनीतिक प्रभाव के लिहाज से यह यात्रा कांग्रेस के लिए भी महत्वपूर्ण रही। अब तक महागठबंधन में कांग्रेस को अक्सर आरजेडी की बी-टीम माना जाता था, लेकिन इस यात्रा ने कांग्रेस को भीड़ जुटाने और एजेंडा सेट करने की क्षमता दिखाई। राहुल गांधी ने भाषणों में लगातार ‘वोट चोरी’ और ‘लोकतंत्र बचाओ’ जैसे मुद्दों को उठाया, जिससे यह संकेत गया कि कांग्रेस महागठबंधन में सक्रिय नेतृत्व की भूमिका निभाने का दावा कर रही है। हालाँकि यात्रा विवादों से अछूती नहीं रही। दरभंगा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी मां को लेकर की गई विवादित टिप्पणी ने राजनीतिक माहौल गरमाया। भाजपा ने इसे विपक्ष की हताशा करार दिया और महागठबंधन के भीतर विरोधाभासों का आरोप लगाया। डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने कहा कि राहुल गांधी की चुप्पी इस बात का प्रमाण है कि महागठबंधन अंदरूनी मतभेदों से घिरा है। वहीं विपक्ष का दावा है कि जनता पूरी तरह उनके साथ है। तेजस्वी यादव ने कहा कि जैसे यूपी में सपा ने बीजेपी के ‘400 पार’ के नारे को आधे पर रोक दिया, वैसे ही बिहार में भी विपक्ष मिलकर बीजेपी को रोक देगा। राहुल गांधी ने कहा कि यह यात्रा बिहार की जनता के हक की लड़ाई है और अब जनता तय करेगी कि लोकतंत्र की रक्षा कैसे करनी है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह यात्रा सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है। कांग्रेस, राजद, सपा और झामुमो अपने मतदाताओं को यह दिखाना चाहते हैं कि वे केवल गठबंधन राजनीति नहीं कर रहे, बल्कि जनता के अधिकारों के लिए भी संघर्षरत हैं। दूसरी ओर भाजपा इसे सिर्फ चुनावी नौटंकी बताकर खारिज कर रही है। बहरहाल, इस यात्रा ने बिहार में चुनावी नैरेटिव बदलने का काम किया है। जातिगत समीकरण, स्थानीय मुद्दे और एनडीए का मजबूत संगठनात्मक ढांचा अभी भी चुनौती हैं। यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया कि आगामी विधानसभा चुनाव में मताधिकार, लोकतंत्र और जनसमर्थन प्रमुख मुद्दे होंगे। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जोड़ी, अखिलेश यादव के समर्थन के साथ, बिहार की सियासी टक्कर को और रोचक बना रही है। आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि इस यात्रा की राजनीतिक ऊर्जा वास्तविक वोटों में कैसे बदलती है। लेकिन इतना तय है कि बिहार की राजनीति अब पहले से कहीं अधिक दिलचस्प और मताधिकार-संवेदनशील मुद्दों पर केंद्रित हो गई है।