नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण मानना स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि आधार पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इसे अकेले नागरिकता साबित करने के लिए नहीं माना जा सकता। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, “हम आधार की स्थिति को आधार अधिनियम से परे नहीं बढ़ा सकते और न ही पुट्टस्वामी मामले के फैसले से आगे ले जा सकते हैं।” आधार अधिनियम की धारा 9 में भी स्पष्ट है कि आधार न तो नागरिकता देता है और न ही निवास का अधिकार। 2018 के पुट्ट्सवामी केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने यही स्पष्ट किया था। बिहार में मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटाए जाने के बाद राजद समेत कुछ दलों ने आधार को अंतिम प्रमाण बनाने की मांग की थी। इस पर कोर्ट ने सख्त लहजे में पूछा, “आधार पर इतना जोर क्यों?” चुनाव आयोग ने बताया कि कई जिलों में आधार सैचुरेशन 140 प्रतिशत से अधिक है, जो फर्जी नामांकन को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को सलाह दी कि वे असली मतदाताओं की मदद करें और बूथ लेवल एजेंटों के जरिए दावे-आपत्तियां दाखिल करवाएं। अदालत ने दो टूक कहा कि फर्जी मतदाताओं को भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करने की इजाजत नहीं दी जाएगी।