आस्था डेस्क ; जिसे लोक में छोटी दीवाली के नाम से भी जाना जाता है। दीपोत्सव के पांच दिनों में यह दिन सबसे विशेष माना गया है, क्योंकि इसकी पृष्ठभूमि एक स्त्री के अदम्य साहस और शौर्य से जुड़ी है।पौराणिक कथा के अनुसार, प्राग्ज्योतिषपुर के असुर सम्राट नरकासुर ने देवताओं को पराजित कर सोलह हजार से अधिक कन्याओं का अपहरण कर लिया था। उसे अजेय होने का वरदान प्राप्त था — कोई देवता या पुरुष उसे नहीं मार सकता था, केवल कोई स्त्री ही उसका अंत कर सकती थी।जब देवता असहाय हुए, तब भगवान कृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने आगे बढ़कर युद्ध की चुनौती स्वीकार की। कृष्ण उनके सारथि बने और सत्यभामा ने अपने पराक्रम से नरकासुर का वध किया, जिससे समस्त बंदिनी कन्याएं मुक्त हो गईं।द्वारका लौटने पर नगर में दीये जलाकर सत्यभामा की विजय और स्त्रियों की मुक्ति का उत्सव मनाया गया — यही परंपरा आगे चलकर छोटी दीवाली बनी।आज भी यह पर्व हमें याद दिलाता है कि दीपक केवल विजय का प्रतीक नहीं, बल्कि स्त्री की स्वतंत्रता, सम्मान और साहस का भी उत्सव है। यह दिन हमें यह प्रश्न पूछने पर विवश करता है — क्या आज भी समाज ने अपने भीतर के “नरकासुर” को परास्त किया है?