राज्यपाल रमेश बैस ने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी राँची के दीक्षांत समारोह में शिरकत की

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी राँची के तृतीय दीक्षांत समारोह के अवसर पर राज्यपाल महोदय ने विद्यार्थियों को सम्बोधित किया, उन्होंने कहा कि-

• मुझे नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एण्ड रिसर्च इन लॉ, राँची द्वारा आयोजित इस तृतीय दीक्षांत सामारोह में आप सभी के बीच आकर अपार खुशी हो रही है। सर्वप्रथम मैं सभी उपाधि ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों को बधाई देता हूँ। साथ ही इस अवसर पर मैं उनके शिक्षकों,अभिभावकों एवं उन सभी सदस्यों को बधाई देता हूँ जिनके कारण उन्होंने ये उपलब्धि हासिल की है।
उन्होंने कहा कि आज पवित्र दिन है, आज से नवरात्र शुरू हो रहा है जो शक्ति का प्रतीक है। पहले लोगों की सोच थी कि लड़कियों को पढ़ाने से क्या होगा? पढ़-लिखकर ससुराल चली जायेगी। लेकिन आज लड़कियों को लड़कों के मुकाबले ज्यादा गोल्ड मेडल मिले हैं। लड़कियाँ लड़कों से कम नहीं है। राज्यपाल ने कहा कि दीक्षांत समारोह एक ऐसा विशेष अवसर होता है, जिसमें विद्यार्थियों द्वारा अपने अध्ययन काल में की गई कड़ी मेहनत को लक्ष्यों की प्राप्ति व सफलता हासिल करने से जुड़ते हुए देखते हैं। इस यात्रा में हमारे विद्यार्थी कई असाधारण क्षणों का अनुभव करते हैं। यह समारोह अन्य अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का भी कार्य करता है।  उन्होंने कहा कि मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि वर्ष 2010 में स्थापित इस विधि विश्वविद्यालय में देश भर से छात्र-छात्राएं अध्ययन के लिए आते हैं और यह जानकर हर्ष की अनुभूति हो रही है कि यहाँ के विद्यार्थियों ने विधि के क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय एवं झारखंड राज्य को गौरवान्वित किया है।


उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि आनेवाले दिनों में यहाँ के विद्यार्थी समाज व देश में व्याप्त कानूनी समस्याओं के समाधान में अपना अमूल्य योगदान देने का कार्य करेंगे। विधि विश्वविद्यालय का उद्देश्य ऐसे अधिवक्ताओं को तैयार करना होता है जो व्यावसायिक रूप से कुशल हों एवं गहन ज्ञान रखते हों। वे न केवल अधिवक्ता और न्यायाधीश बनें बल्कि जन-अपेक्षाओं को पूरा करने तथा भारत के संविधान की रक्षा करने के लिए तैयार हों। आज विधिक पेशे में उसी प्रकार प्रतिभावान लोग आकर्षित हो रहे हैं, जिस प्रकार पहले चिकित्सा और इंजीनियरिंग के पेशे में होते थे। उसी तरह विधि व्यवसाय को हर उस समाज में नेक पेशा माना जाता है, जहां कानून का शासन चलता। हमारे देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और बहुत से स्वतंत्रता सेनानी भी अधिवक्ता थे। वास्तव में, यह तर्क दिया जा सकता है कि हमारे नेताओं द्वारा अधिवक्ता के रूप में प्रशिक्षण ने हमारे राष्ट्रीय आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हमारे स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश हुकूमत से तर्क, दलील तथा नैतिक साहस, जो एक अच्छे अधिवक्ता के महत्त्वपूर्ण हथियार हैं, का प्रयोग करते हुए, शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तरीके से स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार तथा लोकतंत्र की प्राप्ति का प्रयास किया गया था।

राज्यपाल ने कहा कि प्यारे विद्यार्थियो, मैं आप सभी को आपकी सफलता हेतु बधाई देता हूँ। आप शीघ्र ही विधिक पेशे के कॉरपोरेट विधि, न्यायिक सेवा आदि जैसी विभिन्न शाखाओं को अपनाएंगे। आप चाहे कोई भी विधिक शाखा चुनें आपकी सफलता की आधारशिला सभी के मौलिक अधिकारों की रक्षा, नागरिक स्वतंत्रता तथा गरीबों/निर्धनों के अधिकारों की प्राप्ति पर स्थापित होनी चाहिए। नि:स्वार्थ जन-सेवा के उच्च आदर्शों के प्रति स्वयं को समर्पित करें। अन्याय के खिलाफ संघर्ष करें।

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