खनिज संसाधनों के मामले में अमीर झारखंड रत्नगर्भा है, लेकिन अपने कोयले से देश को रोशन करने वाले इस प्रदेश का स्याह पक्ष ये है कि मानव तस्करी को लेकर अभिशप्त है. 90 फीसदी ह्यूमन ट्रैफिकिंग की शिकार हमारी आदिवासी बेटियां हो रही हैं. इनकी सादगी, भोलापन, गरीबी और अशिक्षा का बेजा फायदा उठाकर मानव तस्कर महानगरों में इनकी मासूमियत की खुलेआम बोली लगाकर मालामाल हो रहे हैं और ये नर्क की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. मानव तस्करी का काला धंधा आज भी बेरोक-टोक जारी है. कुछ एहतियात बरते जाएं, तो हमारी आदिवासी बहन-बेटियां दिल्ली जैसे महानगरों के बाजारों में बिकने से बच सकेंगी और मानव तस्करी के काले धंधे का खेल खत्म हो सकता है. पढ़िए गुरुस्वरूप मिश्रा की रिपोर्ट.
बेरहम दिल्ली और आदिवासी बेटियों की सौदेबाजी का दर्द
ह्यूमन ट्रैफिकिंग यानी मानव तस्करी. पशुओं की तरह इंसानों की खरीद-फरोख्त. दिल्ली जैसे महानगरों में काम दिलाने की आड़ में सौदेबाजी करने वाली अनगिनत प्लेसमेंट एजेंसियों की मंडी सजी हुई है, जहां कानून को धत्ता बता इंसान खुलेआम बिकते हैं. खासकर नाबालिग लड़कियां. यह सुनकर थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन कारोबारी दुनिया का एक स्याह सच यह भी है कि खूबसूरत झारखंड की सैकड़ों भोली-भाली मासूम आदिवासी बेटियां इस बाजार में नीलाम हो चुकी हैं. मानव तस्करों की मकड़जाल इतनी मजबूत है कि बेरहम दिल्ली में बेटियों की खुलेआम लग रही बोली तक नहीं गूंज पाती. कुछ बेटियां खुशनसीब निकलीं, जिन्हें रेस्क्यू कर वापस लाया जा सका और वह आज खुली हवा में सांस लेकर अपने परिवार के साथ हैं, लेकिन मानव तस्करों के चंगुल में फंसी सैंकड़ों बेटियां आज भी लापता हैं. जिनका कोई सुराग नहीं. आज भी शासन-प्रशासन के सामने उन्हें मानव तस्करी के दलदल से सकुशल वापस लाने की चुनौती बरकरार है. संदेश है कि बाहरी चमक-दमक से किसी के बहकावे में न आएं. आस-पास ही बेहतर काम की तलाश करें.
पैसे की खनक के आगे बौने पड़ गये रिश्ते
पैसा बोलता है. इसकी खनक इस कदर तेज है कि अपनों ने भी तमाम रिश्ते-नातों को दांव पर लगाकर इनके बचपन का सौदा कर दिया. अब भला किस पर ऐतबार किया जाये. खूंटी की रीना, साहेबगंज की काजल, मांडर की सीता, गुमला की रानी को सगे लोगों ने छोटी सी उम्र में पशुओं की जिंदगी जीने के लिए दिल्ली के बाजार में बेच दिया. सबक है किसी पर हद से ज्यादा यकीन नहीं करें. बाहर जाने की सूचना अपनों को जरूर दें. छुपाएं नहीं.
काम दिलाने व शादी की आड़ में कर दिया सौदा
मानव तस्कर आदिवासी बहुल इलाके में काम दिलाने का प्रलोभन देकर नाबालिग लड़कियों को फांसते हैं, तो गैरआदिवासी इलाके में गरीब बेटियों से शादी कर उन्हें इस दलदल में धकेल देते हैं. सबक है कि शादी और काम पर बाहर जाने को लेकर सूझबूझ से काम लें.
रजिस्ट्रेशन हो, प्लेसमेंट एजेंसियों पर रहे नजर
मानव तस्करी पर रोक के लिए वर्ष 2012 में पंचायत सचिव को गांव से बाहर कमाने जानेवालों का रजिस्ट्रेशन करने का निर्देश दिया गया था. इसके तहत मजदूरों के लिए लाल कार्ड जबकि ठेकेदारों के लिए सफेद कार्ड जारी किया जाना था. इसमें इनकी पूरी जानकारी रहती. कुशल व अर्द्धकुशल श्रमिकों के बीमा की भी व्यवस्था थी. आली की राज्य समन्वयक रेशमा सिंह बताती हैं कि अगर उस वक्त यह जमीनी स्तर पर लागू हो जाता, तो कई बेटियां अपने घर के आंगन की शोभा बढ़ा रही होतीं. वह कहती हैं कि महानगरों की प्लेसमेंट एजेंसियों पर भी कड़ी नजर रखनी होगी. सबक है कि ग्राम सभा को सूचना दिए बिना काम के लिए बाहर जाने से परहेज करें.
अपने पास जरूर रखें जरूरत वाले मोबाइल नंबर
दिल्ली जैसे महानगरों में घरेलू काम, पंजाब-हरियाणा में खेती-बारी, पश्चिम बंगाल व त्रिपुरा में ईंट भट्ठा पर काम के लिए और बड़े शहरों एवं मलेशिया व अफ्रीका में कंस्ट्रक्शन के कार्य के लिए तस्करी की जाती है. इस क्रम में इन्हें यौन शोषण व मानसिक प्रताड़ना का भी शिकार होना पड़ता है. झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम, गुमला, खूंटी, साहेबगंज, सिमडेगा, गोड्डा, रांची, धनबाद, लातेहार, लोहरदगा समेत अन्य जिलों से बड़ी संख्या में तस्करी होती है. सबक है कि मुसीबत में काम आनेवाले जरूरी मोबाइल नंबर जरूर अपने पास रखें.
पुनर्वास की हो उचित व्यवस्था
रेस्क्यू कर लायी गयी नाबालिग व बालिग लड़कियों के पुनर्वास की उचित व्यवस्था नहीं है. मजबूरन वह दोबारा इस काले धंधे के दलदल में उतर जाती हैं. रेस्क्यू के बाद उनकी प्रोपर मॉनिटरिंग भी नहीं हो पाती. एटसेक के राज्य प्रमुख संजय कुमार मिश्रा कहते हैं कि पुनर्वास की अच्छी व्यवस्था के साथ-साथ पीड़िताओं की नियमित निगरानी रखने की जरूरत है. झारखंड विक्टिम कंपनसेशन स्कीम के प्रति जागरूकता भी इनके लिए वरदान है. सुरक्षित पलायन की पुख्ता व्यवस्था पर जोर दिया जाना चाहिए. सबक है कि पीड़िताओं के पुनर्वास की अच्छी व्यवस्था करनी होगी.
सजा की दर बढ़े, तो बढ़ेगा डर
मानव तस्करी की काली दुनिया में पन्ना लाल, बाबा बामदेव, रोहित मुनी, प्रभा मुनि, सुरेश साहू, गायत्री साहू, पवन साहू व लता लकड़ा कुख्यात हैं. इन जैसे बड़े तस्करों पर कानून की सख्ती जरूरी है. दीया सेवा संस्था की सचिव सीता स्वांसी कहती हैं कि तस्करों की कमर तोड़ने के लिए सजा की दर बढ़ाने की जरूरत है. इससे उनमें डर बढ़ेगा. कड़ी सजा पर जोर देना होगा, तभी इनका मनोबल गिरेगा. सबक है कि अदालत में कड़ी सजा को लेकर अभियोजन सीरियस रहे. कोई कोताही नहीं बरते.