एक ऐसा गांव, जहां 2 हजार फीट की ऊंचाई पर कैद है जिंदगी

आपको शायद यकीन न हो, लेकिन विकास के तमाम सरकारी दावे-वादों के बीच तल्ख हकीकत ये है कि झारखंड में एक ऐसा भी गांव है, जहां आज भी 2 हजार फीट की ऊंचाई  पर ग्रामीणों की  जिंदगी कैद है. यहां 12 किलोमीटर बाद ही लोगों को जिंदगी नसीब होती है. आजादी के सात दशक बाद भी इन्हें मूलभूत सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं. पढ़िए गुरुस्वरूप मिश्रा की ग्राउंड रिपोर्ट.

आज भी है किसी मसीहे का इंतजार

‘तूने दिया देश को जीवन, देश तुम्हें क्या देगा, अपनी यादें शेष रखने को, बस नाम तुम्हारा लेगा’ कुछ ऐसी ही व्यथा है देवनद दामोदर और इसके उदगम स्थल चुल्हा पानी के ग्रामीणों की. झारखंड की जीवनरेखा दामोदर से राज्य की बड़ी आबादी आबाद है. बड़ी-बड़ी कोल व थर्मल कंपनियां फल-फूल रही हैं, लेकिन जीवनदाता देवनद दामोदर आज खुद ही भारी प्रदूषण से अंतिम सांसें गिनने को विवश है. इतना ही नहीं दामोदर से सूबे और पड़ोसी राज्य में कई उद्योग वारे-न्यारे हो रहे हैं, लेकिन इसके उदगम स्थल चुल्हा पानी और यहां के ग्रामीणों को आज भी बदलाव के लिए किसी चमत्कार का इंतजार है. दुर्भाग्य से आज भी यहां के ग्रामीणों को जिंदगी के लिए 12 किलोमीटर का जंगली सफर तय करने की मजबूरी है. चुल्हा पानी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाये, तो न सिर्फ देवनद दामोदर का सम्मान बढ़ेगा, बल्कि ग्रामीणों की सूरत भी बदल जायेगी.

पाकर के पेड़ की जड़ से निकला है दामोदर

देवनद दामोदर चुल्हा पानी गांव में पाकर के पेड़ की जड़ से निकलता है. झारखंड के लोहरदगा व लातेहार जिले की सीमा पर स्थित चुल्हा पानी लोहरदगा जिले के कुड़ू प्रखंड की सलगी पंचायत में करीब 2 हजार फीट की ऊंचाई पर है. पहाड़ों और घने व हरे-भरे जंगलों के बीच बसा यह गांव राजधानी रांची से करीब 100 किलोमीटर दूर है. लातेहार जिले के चंदवा थाना क्षेत्र के लुकइया मोड़ स्थित चुल्हा पानी द्वार आपका हार्दिक स्वागत करता है. यहां से लोहरदगा जाने वाली पक्की चिकनी सड़कें और इसके दोनों तरफ हरे-भरे पौधे सफर के दौरान आपका अभिनंदन करते हैं. 14 किलोमीटर की दूरी तय करने पर चुल्हा पानी के लिए 12 किलोमीटर पहाड़ी और जंगली रास्ता तय करना पड़ता है. काफी मशक्कत के बाद अब बमुश्किल यहां दो-चार पहिये वाहन पहुंच पा रहे हैं.    

लातेहार जिले के लुकैया मोड़ स्थित चुल्हा पानी द्वार(तस्वीर jharkhandmedia.com)

सोलर लाइट से जगमग है गांव, लेकिन अंधेरे में जिंदगानी

पांच कच्चे मकान, 11 गंझू परिवार और 42 लोगों की आबादी वाला चुल्हा पानी गांव सोलर लाइट से रोशन है. बिजली के तार भी दो माह पहले पहुंच गये हैं, लेकिन बिजली नहीं आई है. उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय है, लेकिन भगवान भरोसे. दो पारा शिक्षक हैं. महज 10 बच्चों के लिए भी अच्छी शिक्षा व्यवस्था नहीं है. पांचवीं के बाद पढ़ाई के लिए 12 किलोमीटर दूर सलगी जाना पड़ता है. अब तक सिर्फ तीन लड़के मैट्रिक पास हैं. सलगी पंचायत से पूरी तरह कटे इस गांव में न आंगनबाड़ी है, न उपस्वास्थ्य केंद्र. रघु गंझू जैसे बुजुर्गों को न वृद्धापेंशन मिलती है, न शनिचरिया कुंवर जैसी को विधवा पेंशन. सरकारी योजनाएं दम तोड़ती दिखती हैं. प्रशासनिक अनदेखी के कारण युवक भी रांची समेत अन्य जगहों पर मजदूरी करने पर मजबूर हैं.  

माचिस के लिए भी जाना पड़ता है 12 किलोमीटर

आपको शायद यकीन न हो, लेकिन सौ फीसदी हकीकत है. झारखंड की लाइफलाइन देवनद दामोदर का उदगम स्थल चुल्हा पानी झारखंड का एक ऐसा गांव है, जहां आज भी तीन पीढ़ी से यहां रह रहे गंझू परिवार को महज माचिश के लिए भी 12 किलोमीटर का पहाड़ी और जंगली रास्ता तय करना पड़ता है. सामान्य दिनों में भी इस सुविधाविहीन गांव में जीवन की राह आसान नहीं है. ऐसे में बारिश के दिनों में इमरजेंसी में इलाज के लिए घनघोर जंगली-पहाड़ी इलाके में उबड़-खाबड़ रास्तों से 12 किलोमीटर का सफर तय कर सलगी आने की विवशता का अंदाजा लगाया जा सकता है. पीने के पानी का एक मात्र सहारा दामोदर का उदगम स्थल है. उसी अमृततुल्य पानी का ये सेवन करते हैं.   

 

मात्र 15 रुपये है दिनभर की कमाई

सुबह के 10 बज रहे होते हैं. अपने घर की देहरी के बाहर गोद में बच्चा लिए अगनी देवी व ललिता देवी करंज का बीज निकाल रही होती हैं. उनके पास शनिचरिया कुंवर बैठी रहती हैं. पूछने पर वह बताती हैं कि 15 रुपये किलो बिकने वाले करंज के बीज को भी 12 किलोमीटर दूर जाकर बेचना पड़ता है. दिनभर में एक किलो करंज का बीज बमुश्किल निकल पाता है. यानी दिनभर की कमाई महज 12-15 रुपये. रोजगार का कोई दूसरा साधन भी नहीं है.

14 साल पहले हुई थी बदलाव की सुगबुगाहट

वर्ष 2004 में चुल्हा पानी में बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हुई थी. खाद्य आपूर्ति मंत्री सह दामोदर बचाओ आंदोलन के अध्यक्ष सरयू राय की दामोदर यात्रा की पहल के बाद शासन उस गांव तक पहुंचा था. सरयू राय कहते हैं कि इस पर्यावरणीय स्थल को संरक्षित करते हुए उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की जरूरत है. इसके लिए सलगी पंचायत का विकास किया जायेगा.  

ये है चुल्हा पानी की कहानी

कहते हैं कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने वनवास के दौरान चुल्हा पानी गांव में विश्राम किया था. इस दौरान खाना बनाने के लिए पत्थर का चुल्हा बनाया था, लेकिन पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी. तब श्री राम ने पानी के लिए बाण चलाया था. उस वक्त से लगातार पानी निकल रहा है. यही पवित्र जल स्रोत पाकर के पेड़ की जड़ से निकल रहा है. यही दामोदर के नाम से जाना जा रहा है. 

दामोदर का सम्मान हो, तो हमारी जिंदगी बदलेगी-शनिचरिया कुंवर

शनिचरिया कुंवर (55 वर्ष) कहती हैं कि पति की मौत हो गयी. बेटा भी नहीं है. दो बेटियों की शादी हो चुकी है. घर में अकेली रहती हैं. सरकारी राशन ही सिर्फ जीने का सहारा है. करंज का बीज निकालकर पहाड़ से 12 किलोमीटर नीचे उतरकर सलगी क्षेत्र में बेचती हैं, तो बमुश्किल 12-15 रुपये कमा लेती हैं. इस गांव में कोई रोजगार भी नहीं है. विधवा पेंशन भी नहीं मिलती है. कम से कम देवनद दामोदर का भी सम्मान होता, तो हमारी स्थिति सुधर जाती. 

 

12 किलोमीटर नीचे उतरकर करते हैं मजदूरी-रघु गंझू

चूल्हा पानी के सबसे बुजुर्ग 70 वर्षीय रघु गंझू बेलाग-लपेट कहते हैं  कि पेट के लिए मजदूरी करते हैं. इस गांव में कोई व्यवस्था भी नहीं है. इसके लिए 12 किलोमीटर पहाड़ी व जंगली रास्ता तय कर सलगी पंचायत क्षेत्र में मजदूरी करते हैं. वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिलती है. तीन पीढ़ी से पवित्र दामोदर के उदगम स्थल में रहने के बावजूद हमारी किस्मत नहीं बदली. अब जाकर शासन-प्रशासन के लोग हमारी सुध लेने की कोशिश कर रहे हैं.    

दामोदर का सम्मान कर इसे विकसित किया जाये-सामू प्रजापति

दामोदर बचाओ आंदोलन चुल्हा पानी समिति के संरक्षक सामू प्रजापति कहते हैं कि चुल्हा पानी गांव में दामोदर का उदगम स्थल होना गर्व की बात है, लेकिन सरकारी उदासीनता समझ से परे है. ऐसे पवित्र जगह को पर्यटन स्थल घोषित कर विकसित किया जाता, तो न सिर्फ दामोदर का सम्मान होता, बल्कि हर हाथ को काम मिलता और ग्रामीण समृद्ध होते. तीन पीढ़ियों से रह रहा गंझू परिवार आज भी सरकारी राशन पर गुजर-बसर करने को मजबूर है.   

आवासीय विद्यालय की सुविधा हो-जयनारायण महतो

उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय, चुल्हा पानी के पारा शिक्षक जयनारायण महतो कहते हैं कि यह गांव दामोदर का उदगम स्थल है. जीवनदाता दामोदर से राज्य की कोल और थर्मल कंपनियां निरंतर फल-फूल रही हैं, लेकिन यह गांव उस गति से आगे नहीं बढ़ पाया. बेहतर शिक्षा के लिए इस गांव में आवासीय विद्यालय की सुविधा उपलब्ध होती, तो यहां के बच्चों के साथ-साथ पंचायत क्षेत्र के बच्चों का भी सर्वांगीण विकास हो पाता.   

 

संरक्षित कर इसे पर्यटन स्थल घोषित किया जाये-बृजमोहन उरांव 

कुड़ू प्रखंड की सलगी पंचायत के मुखिया बृजमोहन उरांव कहते हैं कि वक्त के साथ चुल्हा पानी की तस्वीर बदल रही है. पहले पहाड़ों व जंगलों से घिरे इस ऊंचे स्थल पर बसे गांव तक पहुंचना काफी मुश्किल था. खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय की पहल के बाद इस गांव की सुध ली जा रही है. ग्रामीणों को स्वरोजगार से जोड़ा जाये और इस पर्यावरणीय स्थल में छेड़छाड़ किये बगैर इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाये, तो यह दामोदर का सम्मान होगा.

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