Kolkata: जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे बंगाल में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो रही हैं।
लोकसभा चुनाव में बंगाल में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के बाद भाजपा के हौंसले बुलंद हैं, वहीं तृणमूल ने भी अपनी सरकार बनाये रखने के लिए एड़ी छोटी का ज़ोर लगा दिया है। एक ओर जहां तृणमूल ने ‘बंगाल को चाहिए अपनी बेटी’ हैशटैग की मदद से अपना कैंपेन चलाया है वहीँ, भाजपा ने पलटवार करते हुए ‘दीदी से बंगाल की जनता चाहती है मुक्ति’ हैशटैग को दुगना ज़ोर दिया है।
यही नहीं, बिहार की सत्ताधारी जनता दल, और मुख्य विपक्ष, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, झारखंड की झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ-साथ शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी गठबंधन में, या अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
झामुमो पश्चिमबंगाल की विधानसभा में खाता खोलने के लिए बेताब है। झारखण्ड के मुख्यमंत्री सह झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष, हेमंत सोरेन ने जनवरी में बंगाल के झारग्राम में रैली कर अपने इरादे साफ कर दिए थे कि वह विधानसभा चुनाव में झारखण्ड से सटी आदिवासी बहुल संभवतः 25 सीटों पर, पुरे दमखम से जीत का डंका बजाने की कोशिश करेगी। हालांकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ये भी कहा है की भाजपा को रोकने के लिए उनकी पार्टी तृणमूल से हाथ मिलाने को भी तैयार है।
वहीँ अगर बिहार की बात करें तो पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर वहां के कई छोटे-छोटे दल सत्ताधारी जदयू के साथ संपर्क में हैं। संभव है कि जदयू के साथ मिलकर वे वहां 75 सीटों चुनाव लड़े। इस सम्बन्ध में जल्द ही उन छोटे दलों के साथ जदयू की एक और बैठक होगी। उक्त बैठक के बाद पूरी स्थिति साफ होगी।
हालाँकि इन सब के बावजूद, बंगाल में टीएमसी और भाजपा के बीच ही सीधा खेल और कड़ा मुकाबला है। एक ओर जहां तृणमूल फ्रंट फुट पर बैटिंग कर रही है, वहीँ भाजपा के नेता भी उनपे बाउंसर पर बाउंसर फेक रहे हैं। अब देखना यह होगा की भाजपा के नेता, तृणमूल की विकेट ले पाते हैं, या उनके बाउंसर पर टीएमसी सीधा छक्के मारती है।
Shreya Roy