राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिके का मंदिर स्थित है। भैरवी और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है। असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर श्रद्धालुओं में काफी लोकप्रिय है। माँ छिन्नमस्तिका मंदिर एक शक्तिपीठ के साथ-साथ पर्यटन का मुख्य केंद्र भी है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने बलि स्थान है, जहाँ रोजाना बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। यहाँ मुंडन कुंड भी है।
इस मंदिर का निर्माण लगभग छः हज़ार वर्ष पहले हुआ था। मंदिर में आसपास प्राचीन ईंट, पौराणिक मूर्ति एवं यज्ञ कुंड एवं अन्य जो पौराणिक साक्ष्य थे, वो नष्ट हो गये या भूमिगत हो गये। माँ छिन्नमस्तिका की जो मूर्ति है, वह पूर्व काल में स्वतः अनूदित हुई थी। इस मंदिर का निर्माण वास्तुकला के हिसाब से किया गया है। इसके गोलाकार गुम्बद की शिल्प कला असम के ‘कामाख्या मंदिर’ के शिल्प से मिलती है। मंदिर में सिर्फ एक द्वार है। छिन्नमस्तिके मंदिर के अलावा यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर हैं।
असम में ‘मां कामरूप कामाख्या’ एवं बंगाल में ‘मां तारा’ के बाद झारखंड का ‘मां छिन्नमस्तिका मंदिर’ तांत्रिकों का मुख्य स्थान है। यहां देश-विदेश के कई साधक अपनी साधना करने नवरात्रि एवं प्रत्येक माह की अमावस्या की रात्रि में आते हैं। तंत्र साधना द्वारा माँ छिन्नमस्तिका की कृपा प्राप्त करते हैं।
छिन्नमस्तिका मंदिर के निकट ठहरने के लिए उत्तम व्यवस्था है। यह पर्यटन का मुख्य केंद्र है। यहां पर फिल्मों की शूटिंग भी होती है। यह मंदिर पहाड़, जंगल एवं नदियां के साथ-साथ हरे-भरे प्राकृतिक वृक्षों से घिरा है। सुबह से शाम तक मंदिर तक पहुंचने के लिए बस, टैक्सियां एवं ट्रेकर उपलब्ध हैं।