झारखंड ने भाजपा और आजसू की दोस्ती के कई रंग देखें हैं। राजनीतिक गलियारे में कई बार चर्चा भी चली कि सुदेश महतो जिसकी सत्ता उसके हो लिए। क्या इस बार के विधानसभा में सुदेश का आंकलन है कि भाजपा सत्ता में नहीं आ रही, इसलिए उन्होंने भाजपा से मुंह मोड़ लिया या कुछ और बात है ? अब भाजपा ने झारखंड में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। भाजपा 53 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा पहले ही कर ही चुकी है, पार्टी बाकी बचे शेष सीटों के लिए भी घोषणा जल्द कर देगी और हुसैनाबाद सीट पर किसी निर्दलीय प्रत्याशी को अपना समर्थन करेगी।
भाजपा – आजसू के बीच झारखंड सहित दिल्ली में कई दौर की बैठकें हुई, लेकिन नतीजा सिफर निकला। बेगाने शादी में अब्दूला दिवाना के तर्ज पर कई लोगों ने मजा भी लूटा। घर घर रघुवर का नारा अपने मंत्रियों के जुबान पर जबरदस्ती चढ़ाने वाले राज्य के मुखिया भी हाथ मलते रह गए और सुदेश महतो अलग राह पर बढ़ चले, यही नहीं भाजपा के कई नाराज दिग्गज नेता आजसू के हो लिए। महागठबंधन के लिए राहत भरी खबर है कि भाजपा – आजसू का गठबंधन टूटा। शायद कांग्रेस, झामुमो और राजद सोच रहा होगा की अब राह आसान हो गया। लेकिन राजनीति की राह कभी आसान नहीं होती। नेता डाल-डाल चलते हैं तो जनता पात-पात हो लेती है।
लोजपा जो बिहार में भाजपा की सहयोगी पार्टी रही है, वो भी झारखंड में बिना जनाधार के मैदान में अकेले तालठोक रही है। जदयू भी बिहार में भाजपा की सहयोगी है, वो भी अकेले मैदान में उतरी हुई है। जीत-हार तो अपनी जगह लोजपा और जदयू की झारखंड में ऐसी स्थिति है कि प्रत्याशी ढूंढ़े नहीं मिल रहे, लेकिन दोनों ही दल में चुनाव के लिए जबरदस्त उत्साह नजर आ रहा है।